नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवा आईएएस अधिकारियों से टीम भावना के साथ काम करने और 2022 तक स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने के लिये उस दिशा में काम करने का आह्वान किया है. पीएमओ के एक वक्तव्य के अनुसार, साल 2015 बैच के आईएएस अधिकारियों को यहां संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने उनसे जीएसटी के कार्यान्वयन और डिजिटल लेन-देन और खासतौर पर भीम ऐप के जरिये लेन-देन को प्रोत्साहन देने जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करने को कहा.
Tuesday 31 October 2017
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सभी योजनाओं के लिए आधार को अनिवार्य बनाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है : सुब्रमण्यम स्वामी
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भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने विभिन्न योजनाओं के लिए बायोमीट्रिक पहचान संख्या (आधार) को अनिवार्य करने के केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है. मंगलवार को ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ‘बहुत जल्द मैं प्रधानमंत्री को यह बताते हुए चिट्ठी लिखने वाला हूं कि कैसे आधार को अनिवार्य बनाना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है.’ राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट इस फैसले को निश्चित तौर पर खारिज कर देगा.
केंद्र सरकार अब तक 50 से ज्यादा केंद्रीय योजनाओं को आधार से जोड़ चुकी है. इसके अलावा इनकम टैक्स रिटर्न भरने, मोबाइल नंबर और बैंक खाते के लिए भी आधार को अनिवार्य बनाया जा चुका है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक केवल उन छह योजनाओं तक आधार के इस्तेमाल को सीमित रखा है, जिनमें सरकार लोगों को सब्सिडी या अन्य लाभ देती है. 15 अक्टूबर 2015 के आदेश में शीर्ष अदालत ने इस बारे में अंतिम फैसला आने तक आधार का इस्तेमाल स्वैच्छिक रखा था.
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने आधार को अनिवार्य बनाने के फैसले के खिलाफ आई याचिकाओं पर सुनवाई करने के लिए पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ गठित की है. यह नवंबर के आखिरी हफ्ते से सुनवाई करेगी. हालांकि, सोमवार को ही केंद्र सरकार के इस फैसले को चुनौती देने के लिए शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल सरकार की आलोचना की थी. पश्चिम बंगाल सरकार की याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि कोई राज्य सरकार संसद से पारित कानून को चुनौती कैसे दे सकती है? लेकिन सुप्रीम ने यह भी माना कि इसे व्यक्तिगत आधार पर चुनौती दी जा सकती है. इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार संशोधित याचिका लगाने पर सहमति जताई है.
मौर्य साम्राज्य का पतन
अशोक के बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया था और लगभग 50 वर्ष के अन्दर इस साम्राज्य का अंत हो गया। इतने अल्प समय में इतने बड़े साम्राज्य का नष्ट हो जाना एक ऐसी घटना है कि इतिहासकारों में साम्राज्य विनाश के कारणों की जिज्ञासा स्वाभाविक ही है।
महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री ने अशोक की धार्मिक नीति को साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण माना है। उसके अनुसार अशोक की धार्मिक नीति बौद्धों के पक्ष में थी और ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों व उनकी सामाजिक श्रेष्ठता की स्थिति पर कुठाराघात करती थी। अतः ब्राह्मणों में प्रतिक्रिया हुई, जिसकी चरमसीमा पुष्यमित्र के विद्रोह में दृष्टिगोचर होती है। इस मत का सफलतापूर्वक विरोध करते हुए प्रसिद्ध इतिहासकार 'हेमचंद्र रायचौधरी' का कहना है कि एक तो अशोक ने पशुबलि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया नहीं था और फिर स्वयं ब्राह्मण ग्रंथों में भी यज्ञादि अवसरों पर पशु-बलि के विरोध के स्वर स्पष्ट सुनाई दे रहे थे। अतः अशोक के तथाकथित प्रतिबंध को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया है। धम्ममहामात्रों के दायित्वों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है, जिसे ब्राह्मण विरोधी कहा जाए। वे तो ब्राह्मण, श्रमण आदि सभी के कल्याण के लिए थे। राजुकों जैसे न्यायाधिकारियों को जो अधिकार दिए गए वे भी ब्राह्मणों के अधिकारो पर आघात करने के उद्देश्य से नहीं अपितु दंड विधान को लोकहित एवं अधिक मानवीय बनाने के उद्देश्य से प्रेरित थे और न ही सेनानी पुष्यमित्र शुंग के विद्रोह को ब्राह्मणों द्वारा संगठित क्रान्ति कहना उचित होगा। यह तो सैनिक क्रान्ति थी, जिसमें धर्म का पुट नहीं था। ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सके कि पुष्यमित्र की राज्यक्रान्ति का कारण सेना पर पूर्ण अधिकार रखने वाले सेनापति की महत्त्वाकांक्षा थी, असंतुष्ट ब्राह्मणों के एक समुदाय का नेतृत्व नहीं।
दुर्बल उत्तराधिकारी
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारणों में अशोक के दुर्बल उत्तराधिकारियों का भी कुछ उत्तरदायित्व था। वंशानुगत साम्राज्य तभी तक बने रह सकते हैं जब तक योग्य शासकों की शृंखला बनी रहे। चंद्रगुप्त और अशोक पराक्रमी योद्धा और कुशल शासक थे, अतः वे इतने विशाल साम्राज्य की एकता बनाए रखने में सफल रहे। परन्तु अशोक के उत्तराधिकारी इस कार्य के लिए सर्वथा अयोग्य थे। जिनके परिणामस्वरूप साम्राज्य के विभिन्न भाग धीरे-धीरे अलग होने लगे। ये दुर्बल शासक इस विघटन को रोकने में असफल रहे। सम्राट अशोक का साम्राज्य उसके उत्तराधिकारियों में विभाजित हो गया। इससे विघटन प्रक्रिया की गति और बढ़ी और साम्राज्य की सुरक्षा को भारी क्षति पहुँची।
हेमचंद्र रायचौधरी के अनुसार मौर्यों के दूरस्थ प्रान्तों के शासक अत्याचारी थे। दिव्यावदान में बिन्दुसार और अशोक के समय तक्षशिला में विद्रोह होने का उल्लेख है। दोनों बार उन्होंने राजकुमार अशोक और कुणाल से दुष्टामात्यों के विरुद्ध शिकायतें कीं। दिव्यावदन में उल्लिखित अमात्यों (उच्चाधिकारियों) की दुष्टता की पुष्टि अशोक के कलिंग अभिलेख से भी होती है। कलिंग के उच्च अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए अशोक ने कहा है कि नागरिकों की नज़रबंदी या उनको दी जाने वाली यातना अकारण नहीं होनी चाहिए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए सम्राट अशोक ने प्रति पाँचवें वर्ष केन्द्र से निरीक्षाटन के लिए उच्चाधिकारियों को भेजने की व्यवस्था की। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अशोक ने इन उच्च अधिकारियों की कार्यविधियों पर नियंत्रण रखा, किन्तु उसके उत्तराधिकारियों के राज्यकाल में ये कर्मचारी अधिक स्वतंत्र हो गए और प्रजा पर अत्याचार करने लगे।
अत्याचार के कारण दूरस्थ प्रान्त अवसर पाते ही स्वतंत्र हो गए। कलिंग और उत्तरापथ और सम्भवतः दक्षिणापथ ने सबसे पहले मौर्य साम्राज्य से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। चंद्रगुप्त की विजयों, कौटिल्य की कूटनीति तथा चक्रवर्ती सम्राट के आदर्श के बावजूद मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत कई अर्धस्वतंत्र राज्य थे जैसे यवन, काम्बोज, भोज, आटविक राज्य आदि। केन्द्रीय सत्ता के दुर्बल होते ही ये प्रदेश स्वतंत्र हो गए। स्थानीय स्वतंत्रता की भावना को चंद्रगुप्त ने अपने सुसंगठित शासन से तथा अशोक ने अपने नैतिकता पर आधारित धम्म से कम करने का प्रयास किया। किन्तु अयोग्य उत्तराधिकारियों के शासनकाल में यह भावना और भी अधिक बढ़ी और साम्राज्य के विघटन में सहायक सिद्ध हुई।
कुछ विद्वानों ने आर्थिक कारणों को भी मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण माना है। अशोक की दानशीलता ने मौर्य अर्थव्यवस्था को अस्त व्यस्त कर दिया था। बौद्ध मठों और भिक्षुकों को प्रभूत धनराशि दान में दी जाने लगी। दिव्यावदान में अशोक के दान की जो कथाएँ दी गई हैं उनकी पुष्टि अन्य बौद्ध अनुश्रुतियों से भी होती है। शासन और सेना का संगठन, संचार साधन तथा जनता के कल्याण के बजाय जब यह धनराशि सम्प्रदायों को दी जाने लगी तो शासन व्यवस्था और विशेषकर सैन्य संगठन की अवहेलना होने लगी। इसके परिणाम अत्यन्त घातक सिद्ध हुए।
अर्थव्यवस्था
रोमिला थापर ने कोसांबी के मत का उल्लेख किया है कि उत्तरकालीन मौर्यों के राज्य काल में अर्थव्यवस्था संकटग्रस्त थी। कर वृद्धि के लिए अनेक उपाय अपनाए गए। इस काल के आहत सिक्कों में काफ़ी मिलावट है किन्तु डा. थापर ने स्वयं इस मत का खंडन किया है। मौर्यों के ही काल में सर्वप्रथम राज्य की आय के प्रमुख साधन के रूप में करों के महत्त्व को समझा गया। विकसित अर्थ व्यवस्था और राज्य के कार्यक्षेत्र के विस्तार के साथ करों में वृद्धि होना स्वाभाविक ही है। सिक्कों में मिलावट होने से यह नतीजा निकाला जा सकता है कि अर्थ व्यवस्था पर भारी दबाव था। उत्तरकालीन मौर्यों के शासन में क्षीण नियंत्रण के कारण मिलावट वाले सिक्के अधिक मात्रा में जारी होने लगे, विशेषकर उन प्रदेशों में जो साम्राज्य से अलग हो गए थे। चाँदी की अधिक माँग होने के कारण हो सकता है कि चाँदी के सिक्कों में चाँदी की मात्रा में कमी हो गई हो। इसके अलावा कोसांबी की यह धारणा इस आधार पर बनी है कि ये आहत सिक्के मौर्य काल के हैं, किन्तु यह निश्चित नहीं है। हस्तिनापुर तथा शिशुपाल गढ़ की खुदाइयों से जो मौर्यकालीन अवशेष मिले हैं, उनसे एक विकसित अर्थ व्यवस्था तथा भौतिक समृद्धि का ही परिचय मिलता है।
मौर्य अत्याचार
नीहार रंजन राय के अनुसार पुष्यमित्र की राज्य क्रान्ति मौर्य अत्याचार से विरुद्ध तथा मौर्यों द्वारा अपनाए गए विदेशी विचारों का, विशेषतः कला के क्षेत्र में अस्वीकार था। इस तर्क का आधार यह है कि साँची और भारहुत कला लोक परम्परा के अनुकूल तथा भारतीय है किन्तु मौर्य कला इस लोक कला से भिन्न है और विदेशी कला से प्रभावित है। नीहार रंजन राय के अनुसार जनसाधारण के विद्रोह का दूसरा कारण अशोक के द्वारा समाजों का निषेध था, जिससे जनता अशोक के विरुद्ध हो गई। किन्तु सवाल यह है कि यह निषेध अशोक के उत्तराधिकारियों ने भी जारी रखा कि नहीं। इसके अतिरिक्त जनता के विद्रोह के लिए यह आवश्यक है कि मौर्यों की प्रजा में विभिन्न स्तरों पर एक संगठित राष्ट्रीय जागरण हो ताकि वे पुष्यमित्र के समर्थन में मौर्यों के अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह का समर्थन कर सकें। किन्तु ऐसी जागृति की सम्भावना तत्कालीन परिस्थितियों में सम्भव नहीं दिखाई देती।
प्रशासनिक व्यवस्था
डा. रोमिला थापर का विवेचन मुख्य रूप से मौर्ययुगीन प्रशासनिक व्यवस्था कि विशेषताओं पर आधारित है। सर्वप्रथम उन्होंने शासन में केन्द्रीकरण की प्रधानता का उल्लेख किया है। ऐसे शासन के लिए यह अत्यन्त आवश्यक था कि शासक काफ़ी योग्य हो। केन्द्र के शिथिल शासन का कमज़ोर पड़ना स्वाभाविक था। अशोक की मृत्यु के बाद, विशेषकर जब साम्राज्य का विभाजन हो गया तो केन्द्र का नियंत्रण शिथिल हो गया और प्रान्त साम्राज्य से पृथक् होने लगे।
अयोग्य शासक
दूसरा कारण है कि अधिकारिक तंत्र भली-भाँति प्रशिक्षित नहीं था। प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर चुने हुए अधिकारी ही राजनीतिक हलचल के बीच शान्ति एवं व्यवस्था बनाए रखने में समर्थ हो सकते थे। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में ऐसी व्यवस्था पाई जाती है। डा. थापर का यह मत स्वीकार नहीं किया जा सकता। अर्थशास्त्र के अमात्य वर्ग का अच्छी प्रकार अध्ययन करने से स्पष्ट होगा कि सभी उच्च कर्मचारी योग्यताओं के आधार पर नियुक्त होते थे। यथार्थ परीक्षण के आधार पर अधिकारियों की नियुक्ति की जो व्यवस्था मौर्य काल में थी वह प्राचीन भारत या मध्यकालीन भारत में कहीं भी नहीं पायी जाती। आधुनिक प्रतियोगिता परीक्षा पद्धति की कल्पना उस युग में करना ऐतिहासिक दृष्टि से अनुचित होगा। शासन संगठन के सम्बन्ध में यह भी कहा गया है कि ऐसी प्रतिनिधि सभा का अभाव था जो कि राजा के कार्यों पर नियंत्रण रख सके। किन्तु राजतंत्र पर आधारित सभी प्राचीन तथा मध्यकालीन राज्यों की यही विशेषता है। ऐसी स्थिति में हम प्रति निधि संस्था के अभाव को मौर्य साम्राज्य के पतन का कारण नहीं मान सकते। कहा गया है कि मौर्यकालीन राजनीतिक व्यवस्था में राज्य की कल्पना का अभाव था।
राज्य की कल्पना इसलिए आवश्यक है कि राज्य को राजा, शासन तथा सामाजिक व्यवस्था से ऊपर माना जाता है। राज्य वह सत्ता है जिसके प्रति व्यक्ति की शासन व समाज से परे पूर्ण निष्ठा या भक्ति रहती है। किन्तु मौर्य शासन में राज्य की कल्पना की गई है। कौटिल्य ने जिस 'सप्तांग' राज्य की कल्पना की है वह काफ़ी विकसित थी। किन्तु यदि यह भी मान लिया जाए कि राज्य की कल्पना मौर्य युग में नहीं थी, तो यूनान के अतिरिक्त विश्व में प्राचीन तथा मध्य काल में राज्य की ऐसी संकल्पना नहीं पाई जाती जहाँ राज्य, राजा तथा समाज से ऊपर हो और जिसके प्रति व्यक्ति की, राजा तथा समाज की अपेक्षा, अधिक निष्ठा हो। यही बात राष्ट्रीय भावना के सम्बन्ध में कही जा सकती है। राष्ट्र की भावना आधुनिक राजनीतिक तत्त्व है। प्राचीन तथा मध्य काल में इसकी खोज करना व्यर्थ होगा। एथेंसस्पार्टा सदृश छोटे देशों में यह भावना सम्भव है। किन्तु एक साम्राज्य जिसमें अनेक राज्यों तथा जातियों के लोग हों, इसकी कल्पना करना असंगत है। अखमीनी तथा रोमन साम्राज्यों में क्या इस भावना की सम्भवना हो सकती है।
हमारे विचार में 'रोमिला थापर' द्वारा प्रस्तुत किए गए उपर्युक्त कारणों में से कोई भी मौर्य साम्राज्य के विघटन का ख़ास तथा प्रबल कारण नहीं लगता। मुख्य कारण तो केन्द्र में योग्य शासक का अभाव है। वंशानुगत साम्राज्य तभी बने रह सकते हैं जब वंश में एक के बाद दूसरा योग्य शासक हो। अशोक के बाद योग्य उत्तराधिकारियों का नितांत अभाव रहा।
मौर्य साम्राज्य
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मौर्य साम्राज्य प्राचीन काल के लोहा जुग में, लगभग ३२२ ईसा पूर्व से १८७ ईसा पूर्व के दौर में, भारतीय उपमहादीप में एक ठो बिसाल राज रहल। एकर संस्थापक चंद्रगुप्त मौर्य रहलें आ अशोकके समय में ई अपना चरम बिस्तार पर पहुँचल। अपना चरम काल में ई एह भूगोलीय क्षेत्र में अब तक ले भइल सभसे ढेर बिस्तार वाला राज्य हवे।
भारतीय मैदानी इलाका के वर्तमान बिहार राज्य में, ओह जमाना में मगध राजघराना के स्थापना से सुरू भइल ई साम्राज्य के राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) रहल।
Sunday 29 October 2017
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